Sunday, September 4, 2011

साधन और साध्य


नवम्बर २००१ 

प्रियजनों के स्नेह में जो आनंद झलकता है वह हमारी आत्मा का ही प्रकाश है. राग-द्वेष अर्थात आसक्ति व विरक्ति मन के कार्य हैं, स्वास्थ्य-रोग आदि देह के, जो सुख-दुःख के रूप में हमे मिलते हैं. वह हमारा वास्तविक परिचय नहीं है. आत्मा ही हमारा सच्चा स्वरूप है. देह व मन तो उपकरण मात्र हैं, साधन हैं, इनकी तृप्ति साध्य नहीं है आत्मा का पूर्ण उद्घाटन ही मानव का साध्य है. उसी में आनंद है और उसी में हमारी शक्तियों का पूर्ण विकास सम्भव है. मन यदि छोटी सी धारा है तो आत्मा सागर. जब तक धारा सागर तक न पहुंचे उसे चैन कहाँ से आयेगा. 

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