जनवरी २००२
कोई कामना जब हमारे हृदय में उठती है तो वहाँ रिक्त स्थान बन जाता है, वह हमें चैन से बैठने नहीं देता किसी न किसी तरह उसकी पूर्ति हम करना चाहते हैं. पर यह जरूरी तो नहीं कि वह रिक्तता भर ही जाये, अर्थात हमारी हर कामना पूरी हो ही जाये. उसकी पूर्ति के रूप में सुख ही तो हम बाहर से लेना चाहते हैं, यदि अपने अंतर के सुख के स्रोत का पता चल जाये तो सुख भीतर से बाहर देने की कला आ जायेगी और भीतर की रिक्तता भी स्वयंमेव भरती चली जायेगी.
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