Tuesday, September 20, 2011

माया और मायापति


कृष्ण आदि देव हैं, जगत के आधार हैं. चैतन्य के ऊपर ही जड़ टिका है. यहाँ सब कुछ प्रकृति के गुणों के अनुसार ही हो रहा है जो उनकी अध्यक्षता में काम करती है. तब इस दुनिया में भय करने का कोई कारण नहीं रह जाता. चिंता अथवा दुःख का भी कोई वाजिब कारण नहीं है. यह तो उसका ही खेल है उसकी माया है. हमें उसकी  माया से मोहित होने की क्या आवश्यकता है. वह स्वयं हमें भीतर से इस माया से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है. इस खेल के नियम भी तो उसके ही बनाये हुए हैं. कृष्ण को अपने जीवन का केन्द्र बना लें तो जीवन के सारे शून्यों को अर्थ मिल जाता है. परमात्मा से प्रेम करना उतना ही सहज है, जैसे पंछियों का गगन में उड़ना, बूंद का सागर में मिलना. हमें सहज होकर इस संसार में रहना है तब जीवन एक उपहार बन जाता है और मृत्यु एक वरदान.

1 comment:

  1. वाह,खूबसूरत आध्यात्मिक पोस्ट.

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