Tuesday, September 27, 2011

श्रद्धा और मन


मार्च २००२ 

हम अपना कीमती सामान सम्भाल कर रखते हैं, पर अपने इकलौते मन को इधर-उधर रखने में नहीं हिचकिचाते. मन की तिजोरी है परम के प्रति श्रद्धा भाव, उसमें मन पूरी तरह सुरक्षित रहता है और बुद्धि को क्यों खुला छोड़ दें उसे भी परम को अर्पित कर दें तो हम पूर्णतया सुरक्षित हो जाते हैं. अन्यथा मन व बुद्धि को चुराने के लिए सारा जगत है, या तो मन चंचलता के कारण स्वयं ही भटक जायेगा. इसलिए अपना मन व बुद्धि ईश्वर के पास रख देने में ही लाभ है. कोई भी अन्यथा भाव तब मन में टिक ही नहीं पाता, परम की स्मृति उसे हटा देती है.

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