Monday, September 19, 2011

अंश और अंशी


फरवरी २००१ 

जो जिसका अंश है वह उससे दूर नहीं रह सकता, जैसे धरती से उत्पन्न वस्तुएं धरती की ओर आकर्षित होती हैं, वैसे ही हम उस चैतन्य के अंश होने के कारण उसी की ओर खिंचते हैं. उस तक पहुंचने के लिए हमें कोई प्रयास भी नहीं करना है, यह उतना ही सहज है जितना ऊपर से गिरायी वस्तु का नीचे आना. बल्कि उससे दूर जाने के लिए हमें अथक प्रयास करना पड़ता है. लेकिन संसार ऐसे ही चलता है विपरीत दिशा में. जो सहज है, सरल है उसे भाता नहीं. वह सदा अपने अहंकार की पुष्टि के लिए कठिन मार्ग को ही अपनाता है. एक दृष्टि से देखा जाये तो संसारी ज्यादा तप करता है भक्त से भी और ज्ञानी से भी.   

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