हमें अपने भीतर स्वराज्य की स्थापना करनी है. मन व इन्द्रियों का स्वामी बनना है. स्वयं का राज्य स्थापित होने का अर्थ है स्वयं को जानना और तब आनंद के लिए प्रयत्न नहीं करना पड़ता, सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है. भय भी हृदय से पलायन कर जाता है. भाव शुद्धि होती है, प्राण शक्ति बढती है, और कुछ न भी हो तो परमात्मा के प्रति भक्ति का जन्म होता है. यही निष्काम भक्ति हमें पूर्ण संतुष्टि देने में समर्थ है. संसार की अन्य कोई वस्तु हमें सदा के लिए तृप्त नहीं कर सकती. परम चेतना ही इस विश्व का कारण है. एकमात्र उसी का शासन हमें अपने मन पर स्वीकार करना होगा यदि हम सदा के लिए परम शांति की कामना करते हैं.
इन्द्रियों को जिसने जीत लिया उसने विश्व विजय कर ली ...
ReplyDeleteपरम चेतना ही इस विश्व का कारण है...
ReplyDeletesahi hai ..