आध्यात्मिकता का एक सूत्र है, सदा दूसरों को क्षमा करते जाना...यदि हमने ऐसा स्वभाव नहीं बनाया तो आनंद व शांति हमसे दूर ही रहेंगे. आत्मभाव में स्थित रहना हमारा प्रथम और अंतिम कर्त्तव्य है, यदि हम हृदय को द्वेष से मुक्त नहीं रख पाए अर्थात अन्यों के दोष दर्शन में ही लगे रहे तो यह सम्भव ही नहीं हो सकता. एक सूक्ष्म बात यहाँ ध्यान देने की यह है कि मन व बुद्धि भी आत्मा के लिए पर ही हैं, अत स्वयं को भी दोष नहीं देना है... ईश्वर की न्याय व्यवस्था में अखंड विश्वास ही हमें ऐसा करने का साहस देता है.
सच है .. क्षमा में ही शांति है ...
ReplyDeletebahut sunder sarthak baat..
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