Wednesday, August 17, 2011

साधना और श्रद्धा


सितम्बर २००१ 

साधक जब अभ्यास में गहरे उतरता है, उसे कई अनुभव होने लगते हैं, और सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है. अनंत सुख हमारे भीतर है कबीर ने कहा है “ मोहे सुन सुन आवे हांसी, पानी विच मीन पियासी” मनुष्य के पास श्रद्धा, ज्ञान और उस परम से जुड़ने की कला है. अव्यक्त को व्यक्त करने की सामर्थ्य मानव में ही है. श्रद्धा के बिना वह यंत्र के समान हो जाता है, श्रद्धा के साथ साथ उत्साही व संयमी होने से ज्ञान का अधिकारी शीघ्र ही हुआ जा सकता है. धर्म का तत्व तर्क-वितर्क करके नहीं दिया जा सकता, वह तो हृदय से ही अनुभव किया जा सकता है.

1 comment:

  1. श्रद्धा के साथ ..उत्साह और संयम ....बहुत सुघड़ बात .....!!
    यही ज्ञान मार्ग है ....!!

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