अक्तूबर २००१
निशब्द परमात्मा तक पहुंचने के लिए शब्दों की एक नाव बनानी पडती है, पर अंततः शब्द भी छूट जाते हैं क्योंकि वह शब्दातीत है. हमारे मन में असीम सामर्थ्य है जो हम चाहें उसे वह अनुभूत करा सकता है, मन की वृत्ति में यदि ईश्वरीय प्रेम हो तो वही प्रगट होगा, यह भाव सतत बना रहे तो ईश्वर हमारे मन का स्वामी बन जाता है, उसी का अधिकार हृदय पर हो जाता है और इसके बाद समता स्वयं ही प्राप्त हो जाती है. ईश्वर की समीपता का अनुभव करते हुए मन में जो नकारात्मक विचार आयें उन्हें ठहरने न देना और जो सकारात्मक विचार आयें उन पर ही ध्यान केंद्रित करने से समरसता बनी ही रहती है.
कल-शनिवार 20 अगस्त 2011 को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया अवश्य पधारें.आभार.
ReplyDeleteआश्था का बिरवा रोपती एक महत्वपूर्ण पोस्ट .अनिता जी इस क्रान्ति पर्व पर आपका अभिनन्दन ..
ReplyDeleteLive updates: Anna Hazare leaves Tihar jail to begin hunger strike
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Confrontation between Team Anna and Delhi police ends as Anna Hazare gets permission for two weeks of fasting.
Are you attending a protest?
संसद में चेहरा बनके आओ माइक बनके नहीं .मौजूदा सरकार और प्रधान मंत्री जी के पास पद तो हैं ,प्रतीक नहीं हैं .संसद को कुछ वकीलों ने अदालत बना दिया है .गिनती की बात करतें हैं ये लोग ,अब चार आदमी भी अपने साथ ले आयें .सब एक दूसरे को जो घटित हुआ है उसके लिए दोषी ठेहरा रहें हैं .आधिकारिक प्रवक्ता अपने वजूद को कोस रहें हैं .
दो पक्ष होतें हैं एक अच्छा एक बुरा .जब बुरा, बहुत बुरा हो जाता है तब अच्छाई उनके लिए भी स्वीकार्य हो जाती है .अन्ना जी एक प्रतीक बन उभरे हैं उज्जवल पक्ष के जिसे आभा सरकार के कालिख होते एहंकार ने दी है .
प्रधान मंत्री "माइक" बनके संसद में आतें हैं सच और झूठ बोलते वक्त उनका चेहरा यकसां लगता है .अब भी वह अपनी गलती सुधार कर एक "चेहरा" बनके आ सकतें हैं .अपनी गलती मान के कह सकतें हैं ,अन्नाजी हम गलत थे ,हम आपके प्रस्तावों को विचारार्थ संसद के पटल पर विमर्श के लिए रखेंगे .हम आपके साथ हैं .