नवम्बर २००१
सुख-दुःख मन की मान्यता और कल्पना के आधार पर होता है, मन एक वृत्ति है सागर की तरंग की तरह, जो अभी है, अभी नहीं. मन एक चलते फिरते रास्ते की तरह भी है जिस पर तरह-तरह के लोग हर समय चलते रहते हैं. हमें जैसे कोई आग्रह नहीं होता कि सड़क पर इसे ही चलना होगा वैसे ही मन भी अनाग्रही रहे. मन यदि अपने मूल को पकड़े रहे तब उसे कोई सुख-दुःख स्पर्श नहीं कर सकता जैसे सूर्य की किरणें सभी को छूती हैं पर स्वयं अछूती रह जाती हैं. विशेष परिस्थिति का आग्रह ही हमें बांधता है.
bahut sunder vishleshan ...
ReplyDeleteabhar anita ji ..
आदरणीया अनिता जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम !
विशेष परिस्थिति का आग्रह ही हमें बांधता है ।
सुंदर और जीवनोपयोगी विचारों के लिए आभार !
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार