कृष्णंवन्देजगद्गुरुं... कृष्ण सारे जगत के गुरु हैं. जहां कृष्ण हैं वहाँ श्री है. वे सहज हैं भीतर और बाहर एक से, युद्ध के मैदान में भी और सखाओं के साथ खेल में भी. भीतर की शुद्धता ही उन्हें सहज बनाती है. कृष्ण के प्रति श्रद्धा का भाव रखकर हम उस ज्ञान के अधिकारी बन सकते हैं, जो हमें दृढ निश्चयी बनाता है, समता सिखाता है. स्वयं को भुलाकर, अहम् त्याग कर जब हम कृष्ण के सम्मुख जाते हैं तो उनकी कृपा, जो सदा बरस ही रही है हमें भी मिलने लगती है, उनके सामने हमारी उपलब्धियों की कोई कीमत नहीं. यदि हमें मान चाहिए तो प्रभु के सम्मुख नहीं आना चाहिए. अहंकार को पोषणा नहीं है उसे तोडना है तभी हम कृष्ण के निकट आ सकते हैं.
No comments:
Post a Comment