Monday, February 20, 2012

वैराग्य महासुख है


दिसम्बर २००२ 
मन में जब तक दरिद्रता रहेगी, अभाव रहेगा तो जीवन में समृद्धि कैसे आयेगी. मन में समृद्धि का बीज बोना है तब ही जीवन में भी पूर्णता का अनुभव होगा. तृष्णा जब समाप्त होगी तभी वैराग्य टिकेगा. वैराग्य ही हमें दृढ़ता प्रदान करता है, स्वतंत्र व पूर्ण बनाता है. मन तब तृप्त हो जाता है. जो कुछ हमें मिला है उसका सम्मान करते हुए तृप्ति का अहसास बना रहे तभी वैराग्य जीवन में खिलता है. अपने ‘स्व’ का विस्तार भी तब होता है. परम से नाता जुड़ता है, हर वस्तु, यह सम्पूर्ण सृष्टि हमारा कर्मक्षेत्र बन जाती है, पर उस में बंधन नहीं है एक अलिप्तता है, बाहर कार्य करते हुए भी भीतर से बिल्कुल अछूते रहने की कला तभी आती है.

4 comments:

  1. trashna jab samapthoti hai tabhi veragya tikega ...bahut achchi baat kahi hai anita ji aapki post me bahut sundar seekh chupi hoti hai.

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  2. सही कह रही हैं आप। सारे पापों का जड़ स्वार्थ ही है।

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  3. आपकी डायरी के पन्नों पर एक से एक रत्न छुपे हैं।

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  4. राकेश जी, मनोज जी व वोईस ऑफ यूथ आप सभी का स्वागत व आभार!

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