Monday, April 9, 2012

सब तुझमें हैं तू ही सबमें


जनवरी २००३ 
सदगुरु हमें बार-बार चेताते हैं, हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है, उसे हमें कैसे पाना है. वह इतने सरल शब्दों में अपने अंतर के सम्पूर्ण प्रेम को उड़ेंलते हुए, हमारा हित चाहते हुए कहते हैं कि हमें जीवन को कैसे जीना चाहिए ताकि मन का परिष्कार हो, बुद्धि का विकास हो, आत्मा का प्राकट्य हो. उस परम लक्ष्य की स्तुति हम कैसे करें, उसे कैसे सराहें और सत्य के अधिकारी कैसे बनें. यह सभी वह हमें पुनः पुनः समझाते हैं. उनके भीतर ज्ञान का एक असीम खजाना है, हम यदि उसका एकांश भी अपना लें तो जीवन पथ पर शीघ्र आगे बढ़ सकते हैं. सर्वव्यापी परमेश्वर में सभी को और सब में उसे देखना है. वही एक है जो अनेक होकर विस्तृत हो गया है. तो सभी समान हुए, कोई छोटा बड़ा नहीं. हमें सभी का सम्मान करना है, वह अखिल ब्रह्मांड स्वामी जैसे सब कुछ करते हुए भी अकर्ता है, हम भी साक्षी भाव से मन व इन्द्रियों को अपने अपने गुणों में वर्तते हुए देखें, उनमें लिप्त न हों. व्यर्थ के कामों से बचे, व्यर्थ के प्रलाप से बचें औए व्यर्थ के चिंतन से भी बचें. जिससे हमारी ऊर्जा ध्यान तथा स्वयं को जानने में लग सके. अपने भीतर उतरने के लिये बहुत ऊर्जा की आवश्यकता है. यदि हम स्वयं को इच्छाओं के जाल से मुक्त कर लें तो वह हमारा सुह्रद हमारी जरूरतों को जैसे अब तक पूरा करता आया है भविष्य में भी करेगा. 

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