Tuesday, April 24, 2012

तमसो मा ज्योतिर्गमयः


फरवरी २००३ 
हम प्रकाश के उपासक  हैं. प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है. ज्ञान की उपासना करें तो हृदय में कैसी शांति का अनुभव होता है जो अधरों को सदा खिला रखती है. अंतर में प्रसन्नता का अनुभव तभी हो सकता है जब कोई उद्वेग न हो, मान की चाह न हो, संक्षेप में कहें तो जब मन माया पर विजय प्राप्त कर ले. माया अर्थात जो है नहीं पर दिखता है. जो कुछ भी हमें चारों ओर दिख रहा है प्रतिपल बदल रहा है, नहीं की ओर जा रहा है. जिसका प्रभाव क्षणिक है उसका असर मन पर लेना मूर्खता ही है. उसे सत्य मान कर उसमें स्वयं को लिप्त कर लेना ही अज्ञान है, जितनी शीघ्र इस अज्ञान से मुक्ति मिलेगी उतना शीघ्र हमारे भीतर ज्ञान का सूर्य चमकेगा. यह जो कभी-कभी मन में विक्षिप्तता घर कर लेती है, किसी की कही बात, किसी का किया व्यवहार हृदय को, एक क्षण के लिये ही सही, बींधता है तो इसका अर्थ यही है कि अभी भीतर अँधेरा है. यह जगत जैसा हम चाहते हैं वैसा ही रूप धर लेता है. मन में कोई चाह न हो, तृप्ति हो तभी ज्ञान टिकता है. जहाँ चाह जगी उद्वेग होगा, जबकि वह क्षणिक ही होती है कुछ समय बाद उसका कोई महत्व नहीं रह जाता, उसके बिना भी हम बड़े मजे से रह सकते थे, मात्र अपने अहं को पोषने के लिये हम चाहते हैं कि हर चाह पूरी हो. तब निष्कर्ष यही निकला कि अहं ही दोषी है. मिथ्या अहंकार ही हमें अपने को बहुत कुछ मानने की सलाह देता है, हम यदि कुछ हैं तो उस परम सत्ता के अंश मात्र हैं, उसने हमें एक पात्र बनाया है, अपने पात्र को सही ढंग से निबाहें, बस यहीं तक हमारा बस है, उसके आगे वही जाने...वह हमें असीम स्नेह करता है !   

5 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. जहाँ चाह जगी उद्वेग होगा, जबकि वह क्षणिक ही होती है कुछ समय बाद उसका कोई महत्व नहीं रह जाता, उसके बिना भी हम बड़े मजे से रह सकते थे, मात्र अपने अहं को पोषने के लिये हम चाहते हैं कि हर चाह पूरी हो. तब निष्कर्ष यही निकला कि अहं ही दोषी है. मिथ्या अहंकार ही हमें अपने को बहुत कुछ मानने की सलाह देता है,

    very great thoughts....and its true.

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  3. प्रकाश की उपासना - एक अच्छा कन्सेप्ट है।

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  4. सदा जी, इमरान, रश्मि जी, व मनोज जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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