हमारे सभी कर्म आनंद की
अभिव्यक्ति हैं, कर्मों के द्वारा हम आनंद प्राप्त करने की चेष्टा करें तो वह व्यर्थ होगी. हमारा हर कृत्य आनंद का कारण है,
हम जब भीतर से तृप्त होते हैं तो जो भी होता है वह मुक्ति का कारण बनता है, वरना
यदि हम दूसरों की खुशी के लिए अथवा किसी बड़े उद्देश्य के लिए कर्म करते हैं तो वे
हमें अभिमान से भर देते हैं, और हम जो जंजीरों से छूटना चाहते हैं, स्वयं को एक और
जंजीर से बाँध लेते हैं. जो भी करने की योग्यता हमें मिली है, उसके प्रति कृतज्ञता
की भावना से भरने पर हम कायस्थ होते हैं और फिर ध्यानस्थ. एक शांति की शीतल फुहार
जैसे भीतर कोई बरसा रहा हो, ऐसी अनुभूति होती है, जब कर्मों के द्वारा हम कुछ
प्राप्त करना नहीं चाहते, वे सहज ही होते हैं जैसे हवा का बहना.
शीतल बयार सा आलेख ....
ReplyDeleteआभार अनीता जी ....
अनुपमा जी, स्वागत है..
Deleteसभी कर्म आनंद की अभिव्यक्ति हैं,यही है जीवन की सार्थकता,आभार.
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, सही कहा है आपने..आभार!
Deleteबहुत ही बढिया।
ReplyDeleteसदा जी, आभार!
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-03-2013) के चर्चा मंच 1186 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुण जी, बहुत बहुत आभार !
Deleteकर्म वही है जो करणीय है ,जिसके करने से जग का कल्याण हो ,समाज का कल्याण हो ,उस से ही आनंद मिलता है
ReplyDeletelatest postऋण उतार!
कालीपद जी, जब हम आनन्दित होते हैं तभी ऐसे कर्मों का जन्म होता है..
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