Friday, March 15, 2013

कर्म ही आनंद है



हमारे सभी कर्म आनंद की अभिव्यक्ति हैं, कर्मों के द्वारा हम आनंद प्राप्त करने की चेष्टा करें तो वह  व्यर्थ होगी. हमारा हर कृत्य आनंद का कारण है, हम जब भीतर से तृप्त होते हैं तो जो भी होता है वह मुक्ति का कारण बनता है, वरना यदि हम दूसरों की खुशी के लिए अथवा किसी बड़े उद्देश्य के लिए कर्म करते हैं तो वे हमें अभिमान से भर देते हैं, और हम जो जंजीरों से छूटना चाहते हैं, स्वयं को एक और जंजीर से बाँध लेते हैं. जो भी करने की योग्यता हमें मिली है, उसके प्रति कृतज्ञता की भावना से भरने पर हम कायस्थ होते हैं और फिर ध्यानस्थ. एक शांति की शीतल फुहार जैसे भीतर कोई बरसा रहा हो, ऐसी अनुभूति होती है, जब कर्मों के द्वारा हम कुछ प्राप्त करना नहीं चाहते, वे सहज ही होते हैं जैसे हवा का बहना.

10 comments:

  1. शीतल बयार सा आलेख ....
    आभार अनीता जी ....

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    1. अनुपमा जी, स्वागत है..

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  2. सभी कर्म आनंद की अभिव्यक्ति हैं,यही है जीवन की सार्थकता,आभार.

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    1. राजेन्द्र जी, सही कहा है आपने..आभार!

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  3. बहुत ही बढिया।

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-03-2013) के चर्चा मंच 1186 पर भी होगी. सूचनार्थ

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    1. अरुण जी, बहुत बहुत आभार !

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  5. कर्म वही है जो करणीय है ,जिसके करने से जग का कल्याण हो ,समाज का कल्याण हो ,उस से ही आनंद मिलता है
    latest postऋण उतार!

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    1. कालीपद जी, जब हम आनन्दित होते हैं तभी ऐसे कर्मों का जन्म होता है..

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