जून २००४
प्रेम से परिवर्तन सम्भव है,
प्रेम हमारे भीतर एक क्रांति का उदय करता है, हम भीतर पिघल जाते हैं. गुरु के
चरणों में जब हमारा सिर झुकता है तो भीतर एक घटना घटती है, अपने सुख-दुःख,
पाप-पुन्य, गुण-अवगुण सभी को गुरु अथवा ईश चरणों में समर्पित करके जब हम मुक्त हो
जाते हैं तो कृपा का बादल मन के आंगन में बरसता है, अंतर भीग जाता है और प्रेम की
उर्जा भीतर उदय होती है. हम अपने स्वभाव को पा जाते हैं, प्रेम हमें हमारे स्वभाव
से मिलाता है, वास्तव में हम दूसरे को प्रेम कर नहीं होते अपनी आत्मा से ही कर रहे
होते हैं, क्योंकि सीधे-सीधे उस तक हमारी पहुंच नहीं है, हमें दूसरे के वाया जाना
पड़ता है, सभी के भीतर वही स्वभाव है, जो प्रेम का स्रोत है. सच्चा प्रेम वहीं से उपजता
है और वहीं पहुंच जाता है.
बहुत सुन्दर और उतना ही सार्थक भी .....!!
ReplyDeleteआभार अनीता जी ...!!
राजेश जी, बहुत बहुत आभार !
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