जून २००४
मन हमें किस तरह अपने जाल
में उलझा लेता है, हमें खबर तक नहीं होती. बहुत बड़ा शिकारी है यह मन,
जन्मों-जन्मों से हम इसके शिकार होते आये हैं, तभी सद्गुरु कहते हैं, “मन के मते न
चालिए” कैसे हमारा मन ही हमारा शत्रु बन जाता है, कैसा भयभीत करता है यह पागल मन.
जिसे जानने का हम भ्रम पालते हैं. हम अपनी बेवकूफियों का शिकार बनते रहते हैं और
अपने इर्द-गिर्द का वातावरण भी दूषित करते हैं. हम स्वयं को ही नहीं जान पाते और
अन्यों को जानने का झूठा दम भरते हैं, किसी के बारे में कोई राय कायम करने से
पूर्व, कोई बात कहने से पूर्व सौ बार सोचना चाहिए. सद्गुरु ठीक कहते हैं ऊपर-ऊपर
से लगता है कि हम सुधार कर रहे हैं मन का, पर जो भीतर कर्म के बीज पड़े हैं, वे तो
तभी जायेंगे जब हम ध्यान की गहराई में पहुंचेंगे. अभी बहुत सफर तय करना है, अभी तो
शुरुआत है. जब पहली सीढ़ी पर कदम रखा है तो लक्ष्य भी एक न एक दिन मिलेगा ही. सद्गुरु
का साथ हर क्षण हमारे साथ है, वह हर तरह से हमारी सहायता करते हैं. वह स्वयं पूर्णकाम
हैं, धन्य हैं वे आत्माएं जो स्वयं पवित्र होकर दूसरों का मार्ग प्रशस्त करती हैं.
किसी न किसी जन्म में, सम्भव है इसी जन्म में, हम भी किसी के काम आ सकें, पहले तो
स्वयं का कल्याण करना है, मुक्त होना है. हर कीमत पर बन्धनों को तोड़ कर फेंकना है,
अंतिम बार हो यह बंधन, आगे नहीं !
ReplyDeleteरोजाना चार्जिंग चाहिये सद विचारों की आज .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
वीरू भाई, सही कहा है आपने..आभार!
Deleteधन्य हैं वे आत्माएं जो स्वयं पवित्र होकर दूसरों का मार्ग प्रशस्त करती हैं. किसी न किसी जन्म में, सम्भव है इसी जन्म में, हम भी किसी के काम आ सकें, पहले तो स्वयं का कल्याण करना है, मुक्त होना है. हर कीमत पर बन्धनों को तोड़ कर फेंकना है, अंतिम बार हो यह बंधन, आगे नहीं !
ReplyDeleteसंवेदना पूर्ण अभिव्यक्ति सुप्रभात
रमाकांत जी, सुप्रभात, आभार..
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