मई २००४
जिस समय हम पूर्ण वर्तमान में
पहुंच जाते हैं, अपने आप शांत हो जाते हैं. वर्तमान कभी पीड़ा नहीं देता, सदा भूत व
भविष्य ही पीड़ा के कारण होते हैं. हमारे कार्य भी तभी बिगड़ते हैं जब हम वर्तमान से
चूक जाते हैं. ध्यान में हमें वर्तमान की शक्ति अनुभूत होती है. साधक को अभी बहुत
दूर जाना है पर सद्गुरु अथवा इष्ट का साथ मिलने से अध्यात्मिक यात्रा सरल हो जाती
है. मन में कोई प्रश्न उठे तो भीतर से उसका उत्तर आता है. भीतर जो भी शुभ विचार
अथवा आनंद उभरता है वह उन्हीं का प्रसाद है.
उस गुरुतत्व का अनुभव वर्तमान का शुद्धतम क्षण ही दिलाता है. कृष्ण जो जगद्गुरु
हैं, हमारी आत्मा की आत्मा हैं, हमारी आत्मा कृष्ण का कलेवर है, तभी सदा शुभ का
परामर्श देती है. जैसे लोहा चुम्बक के पास एक बार पहुंच जाता है तो शेष कार्य
चुम्बक ही करता है, वैसे ही यदि एक बार हम कृष्ण को अपना सखा बना लें तो वह हमें
छोड़ता नहीं. यह जगत जो स्थायी होने का भ्रम देता है, पल-पल बदल रहा है, यह मन यदि
आत्मा का स्थायित्व नहीं पाता, अस्थिर ही रहेगा.
बहुत सुंदर विचार,,,,
ReplyDeleteRecent post: होरी नही सुहाय,
धीरेन्द्र जी, स्वागत है आपका..
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