मई २००४
नन्हा बच्चा अपने भीतर की मस्ती
से आनन्दित है, वह किसी भौतिक कारण के कारण सुखी नहीं है, पर दुखी वह किसी कारण से
ही होता है. मानव जब बड़ा होता है तो किसी
कारण से ही सुखी होता है और दुखी बिना किसी कारण के ही होता है. कल्पनाओं के महल
बनाकर वह स्वयं ही उन्हें गिराता है फिर आकुल होता है. प्रतिस्पर्धा की अग्नि में
स्वयं को झुलसाता है, दिखावे की पीड़ा से गुजरता है. हम अकारण ही भयभीत होते हैं.
और अपने भीतर के आनंद को ढक देते हैं. सहज उल्लास जो छह महीने के बच्चे में प्रकट
होता है भीतर से, वही उस इंसान में भी प्रकट हो सकता है जिसने सारी तृष्णाओं का
त्याग कर दिया है, जो पूर्णकाम है, उसके जीवन की बागडोर अब अस्तित्त्व के हाथों
में है. वह सहज रूप से जीता है, तभी उस अकारण करुणानिधि उस परमात्मा की अहैतुकी कृपा
का अनुभव उसे होता है.
sachmuch apne aangan main khelti chhoti si bhanji ko dekhte huye yahi sochta hun.
ReplyDeleteआप्त वाणी..
ReplyDeleteमानव जब बड़ा होता है तो किसी कारण से ही सुखी होता है और दुखी बिना किसी कारण के ही होता है.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति l बधाई.......
अति सुन्दर विचार आनंद वर्षन करने वाला .
ReplyDeleteअमृता जी, हिमांशु जी, वीरू भाई व सौरभ जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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