Tuesday, April 2, 2013

पूर्णमदः पूर्णमिदं



पांच तत्वों से मिलकर हमारा तन बना है और तीन तत्वों से मन, वे हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश. जब हम सृजनशील होते हैं, पोषण करते हैं अथवा परिवर्तन करते हैं तो ये तीनों तत्व क्रियाशील होते हैं. सभी के भीतर किसी न किसी अंश में ये तीनों होते हैं, लेकिन जब हमारे कर्म स्वार्थ की पूर्ति के लिए न होकर सहज हों अथवा तो आनंद के फलस्वरूप हों तो वे तीनों से पार चले जाते हैं, यही तीनों सत्व, रज, तम गुण के भी परिचायक हैं, हमें गुणातीत होना है. आत्मा से आत्मा में संतुष्ट रहना तभी सम्भव है. बाहर का सुख मृग मरीचिका के अतिरिक्त कुछ नहीं, भीतर का सुख निरपेक्ष है, अनंत है, अपरिमेय है, इसका आश्रय लेकर जब हम जगत में व्यवहार करते हैं तो वह पूर्ण होता है, प्रामाणिक होता है. पूर्ण की उपासना ही हमें पूर्ण बनाती है.



No comments:

Post a Comment