जुलाई २००४
हमारी अनुभूतियाँ जितनी सच्ची
होंगी, उतना हमारा मन खाली होता जायेगा, हमारा मन जितना खाली होगा उतना प्रेम
उसमें समाता जायेगा. हम कटुता से तभी भरते हैं जब भीतर की अनुभूति को छू नहीं पाते,
एक पर्दा सेवार का मन की झील पर छा जाता है. हमें सरल होना है, कोई दुराव या छिपाव
नहीं क्योंकि हमारे भीतर कोई है जो सब देखता है, सब जानता है, वह हमारे पक्ष में
है, सुह्रद है, हितैषी है, वह हमें प्रगति के पथ पर देखना चाहता है, मन की झील जब
स्वच्छ होगी पारदर्शी होगी तभी हम भीतर की उस गरिमा को देख पाएंगे. हमारा जीवन तब
एक मधुर गीत की तरह विश्व में गूंज उठेगा, उन्मुक्त पंछी की तरह गा उठेगा. जंगल के
नीरव एकांत में बहते झरने का संगीत भीतर से सुनाई देगा. हम जो ऊर्जा के अनंत स्रोत
हैं, पर स्वयं की कीमत नहीं जानते, परमात्मा तब हमारे माध्यम से स्वयं को प्रकट
करेगा. हम जिसके पास एक खजाना है और जन्मों से इस खजाने की चाबी को खोजे बिना ही चले
गए हैं, इस बार उस खजाने को पाकर यहीं लुटा देना है.
जिस ईश्वर ने हमें बनाया उन्होंने हमें सब गुण दिए हैं और जिस दिन हम अपने आपको पहचान जायेंगे हमें नाज़ होगा खुद पर ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अनुभूति अनीता जी ...
अनुपम भाव ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
हम जो ऊर्जा के अनंत स्रोत हैं,पर स्वयं की कीमत नहीं जानते, !!! प्रेरक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
सार्थक चिन्तन !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteअरुन जी,स्वागत व आभार !
Deleteबहुत अच्छे और गहरे भाव ...
ReplyDeleteएक पूरा पर्यावरण ,सजीव माहौल बुनती है यह रचना सरपट दौड़ती अपनी रफ़्तार से ज़िन्दगी का .बिम्ब शाम के धुंधलके का गौ धूलि का खेत खलिहान गाँव की पगडंडियों का धूल उठाती बिना साय- लेंसर की फटफटी का .बढ़िया रचना .
ReplyDeleteआनंद की चाबी है ये..
ReplyDeleteगहन विचार अनिता जी .. बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteशालिनी जी, अमृता जी, उपासना जी, वीरू भाई,प्रतिभा जी, धीरेन्द्र जी व सदा जी आप सभी का हार्दिक स्वागत व आभार !
ReplyDeleteप्रेरक प्रस्तुति....
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