जून २००४
चिदाकाश में आत्मा तथा परमात्मा
साथ-साथ हैं पर दोनों के बीच मन का पर्दा है, जैसे-जैसे मन खाली होता है, वैसे
वैसे वे प्रकट होने लगते हैं. उनकी निकटता का अहसास होता है, जब तक पूर्णता का
अनुभव नहीं होता मन बना ही रहता है, पर कृपा सदा हम पर बनी रहती है. पूर्णता मानव
के भीतर बीज रूप में विद्यमान रहती है, पर मन के संकल्प-विकल्प उसे प्रस्फुटित
होने से रोकते हैं. संत जन अपने विशाल हृदय में अनंत प्रेम, ज्ञान और आनंद समेटे
हैं, उनके दर्शन से हमारे भीतर भी गाँठें खुलने लगती हैं, वह हमारे दर्पण बन जाते
हैं, हमें मन को देखने की कला आ जाती है.
उनके दर्शन से हमारे भीतर भी गाँठें खुलने लगती हैं, वह हमारे दर्पण बन जाते हैं,
ReplyDeleteRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
बहुत ही प्रेरक प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी, व राजेन्द्र जी, स्वागत व आभार !
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