Thursday, April 4, 2013

सहज हुए से सुख आता है



यदि कोई किसी भौतिक वस्तु, परिस्थिति या व्यक्ति से ही सुख प्राप्त करने का प्रयास करेगा तो दुःख का भागी भी उसे होना ही पड़ेगा. सुख के पीछे भागो तो नियम के अनुसार दुःख पीछे-पीछे आता ही है, इसी तरह यदि सुख का केन्द्र ज्ञान है तो आनंद पीछे-पीछे आयेगा. इन्द्रियों से प्राप्त होने वाले भोग अक्सर रोग के कारण बनते हैं और ज्ञान से प्राप्त होने वाला आनंद योग कराता है. ईश्वर ने हमें बुद्धि प्रदान की है जो ज्ञान की आकांक्षी है, जो भीतर के रस से ही तृप्त हो सकती है, उस रस से, जिसका स्रोत प्रेम है. जीवन में प्रेम नहीं है तो आनंद निज की वस्तु बनकर रह जायेगा, उसका व्यवहारिक रूप प्रेम है. भीतर के आनंद का बाहर प्राकट्य हमारे कर्मों से होगा, अन्यथा बादलों में बिजली की चमक की तरह उसका आना होगा. जो चिर स्थायी है, ऐसी तेल धारवत् शांति जब हृदय में छायी रहे वही आनंद है.

2 comments:

  1. सच्चे आनद की व्याख्या की है ... भावपूर्ण ...

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  2. दिगम्बर जी, स्वागत है !

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