जुलाई २००४
संतजन कहते हैं, जो भी हम करें,
सौ प्रतिशत लगकर करें तो हमारा वह कार्य भी सफल होगा और भीतर संतोष भी जगेगा. संतोष
से सुख उपजता है जो भीतर के आनंद की ही झलक देता है. आनंद किसी कार्य का मोहताज
नहीं बल्कि वह तो कार्यों के रूप में प्रकट होता है, वह सहज होता है जैसे इस जगत
में सहज ही दिन-रात घटते हैं. उसके होने का कोई कारण नहीं, वह तो सब कारणों का कारण
है. इसलिए सहज संतोष भाव में जब कोई होता है तो यह उसके भीतर से वैसे ही छलकता है
जैसे फूल से उसकी सुगंध, झरने से उसका निनाद, तथा आकाश से उसकी नीलिमा. प्रकृति सहज
है तभी तक सुंदर है वरना तो विनाश भी ढा सकती है, वैसे ही मानव जब तक सहज है, आनंद
का स्रोत है, वरना उसके भीतर ज्वालामुखी भी फट सकते हैं. अपनी असहजता के कारण वह
खुद के साथ-साथ औरों को भी पीड़ा देता है.
सबसे बड़ा धन संतोष करना है,संतोष से सुख उपजता है,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
.....इसलिए सहज संतोष भाव में जब कोई होता है तो यह उसके भीतर से वैसे ही छलकता है जैसे फूल से उसकी सुगंध, झरने से उसका निनाद, तथा आकाश से उसकी नीलिमा.
ReplyDeleteso nice...
धीरेन्द्र जी व राहुल जी स्वागत व आभार !
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