Friday, April 26, 2013

सुख की आस सदा भरमाये


अगस्त २००४ 
कृष्ण कहते हैं, कामना यदि पूरी न हो तो क्रोध को जन्म देती है, क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति लोप और स्मृति विभ्रम से अशांति, अशांत व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता. कामना यदि पूर्ण हो जाये तो मन पर उसका संस्कार गहरा होता जाता है और बार-बार हम उसकी पूर्ति चाहते हैं. अपने सहज सुख को भुलाकर, जो बचपन में हम कांच-मिट्टी के खिलौनों से ही अथवा तो ऐसे ही पाए हुए थे, हम क्षणिक सुखों के गुलाम बनते जाते हैं. लगता है जैसे हम अपनी आँखें बंद किये बैठे हैं. जो दाता है वह भिक्षु बना हुआ है. सुख की परिभाषा ही यदि गलत होगी तो सच्चा सुख हमें मिलेगा भी कैसे? जो किसी व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति पर निर्भर न हो. जो मुक्त करता हो, ऊर्जा से भर देता हो. जो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, ऐसा सुख ही हमें पूर्णता की और ले जाता है.

11 comments:

  1. ध्यायतो विषयान् पुंसः ....
    बहुत सुन्दर और सार्थक बात ....

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  2. क्षणिक सुख हमें गुलाम बनाते हैं!!!

    Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

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  3. काम धेनु बन्ने का मतलब ही यह है विकारों पर विजय प्राप्त कर लें .परम सुख (आत्म सुख )तभी प्राप्त होगा जब हम अपने आप को आत्मा समझ हर काम उस निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा की याद में करेंगें .उसी से सब काम करने की शक्ति प्राप्त करेंगे सच्चा सुख भी .

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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    1. अरुण जी, बहुत बहुत आभार!

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  5. सच कहा आपने सुख की लालसा तो बढती ही रहती है

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  6. मनुष्य अनंत इच्छायों का गुलाम है !
    latest postजीवन संध्या
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  7. आजकल भौतिक सुख पाने की लालसा में असली सुख से भी वंचित हो जाते हैं !

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    1. प्रवीन जी, स्वागत है..सही कहा है आपने !

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  8. शुक्रिया आपकी टिप्पणी का .श्रेष्ठ विचार ही श्रेष्ठ संस्कारों की नींव रखते हैं .आप नित इसी ओर कार्यरत हैं .ॐ शान्ति .

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  9. अनुपमा जी, धीरेन्द्र जी, कालीपद जी, उपासना जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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