जुलाई २००४
“रामकथा के तेहि अधिकारी, जिन्ह
के सत्संगति अति प्यारी” रामकथा तत्वज्ञान भी कराती है, और भीतर तक शांति का
प्रसार भी करती है. ‘संयम और अनुशासन’ का पाठ भी पढाती है, संयम और अनुशासन के दो
पदत्राण जिसके पास हों उसे कांटे नहीं चुभते, जगत के रास्तों पर वह निर्भीक होकर
चल सकता है. हमारे जीवन को सुखमय बनाने के लिए बाहरी साधनों की उतनी आवश्यकता नहीं
है, जितनी भीतरी साधनों की. भीतर की यात्रा इतनी मधुर है और इतनी सुखद लेकिन उसके
लिए जो उस पर चलना चाहता है. इस पथ के एक ओर सद्गुरु है और दूसरी ओर परमात्मा है,
एक राह दिखाता है और दूसरा हाथ पकड़ कर लिए चलता है. इस रास्ते पर ‘संयम और अनुशासन’
के पदत्राण के साथ साथ भक्ति का छत्र भी चाहिए. हमारा लक्ष्य जब स्वयं ब्रह्मांड
का नियंता है तो उस तक जाने का मार्ग भी उसी के अनुरूप ही होगा. उसे जानने की
इच्छा जब किसी के हृदय में जगती है तो हृदय के कपाट स्वयं खुल जाते हैं, वह स्वयं
ही फिर अपना पता बताता है, उसे और कोई नहीं जना सकता. वह जैसा स्वयं है वैसा ही
अपने भक्तों को बना देता है.
वह जैसा स्वयं है वैसा ही अपने भक्तों को बना देता है.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने .....
संयम और अनुशासन के दो पदत्राण जिसके पास हों उसे कांटे नहीं चुभते, जगत के रास्तों पर वह निर्भीक होकर चल सकता है. हमारे जीवन को सुखमय बनाने के लिए बाहरी साधनों की उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी भीतरी साधनों की.
ReplyDeleteअनीता जी बिलकुल सही कहा ..
जीवन को सुखमय बनाने के लिए संयम और अनुशासन जरूरी है,,
ReplyDeleteRECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
सच कहा है .. उसे जानने की इच्छा ही शुरुआत है उसे पाने की ...
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.
ReplyDelete"महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी
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