जुलाई २००४
कबीर कहते हैं, गहरी नदिया,
नाव पुरानी, खेवटिया से मिले रहना.....कुछ लेना न देना मगन रहना...
संसार की नदी गहरी है..तन की नाव जर्जर हो रही है..भीतर वाले से मिलकर जो नहीं
रहेगा वह तो डूबेगा ही. नित्य से मिले रहना है, अनित्य तो वैसे भी छूटने ही वाला
है. असत्य टिकने वाला नहीं है, सत्य का
आश्रय लेने में ही हमारी जीत है, तब हमें किसी के अधीन नहीं रहना होगा, हर क्षण एक
स्वतंत्रता का भास होगा. हम तब तक सम्पूर्ण रूप से आनन्दित नहीं रह सकते, जब तक
हमारे भीतर तृष्णा की छोटी सी भी चिंगारी जलती रहेगी. जब अहंता, ममता नहीं रहती तब
भीतर अखंड शांति आ विराजती है.
जब अहंता, ममता नहीं रहती तब भीतर अखंड शांति आ विराजती है.
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने ...
नवसंवत्सर और नवरात्र की बधाई व शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteजीवन का मरम
ReplyDeleteसुप्रभात सहित प्रणाम स्वीकारें आपने सच कहा .....संत वाणी के लिए आभार
ReplyDeleteबहु उपयोगी विचार-आत्म स्वरूप (आत्मा के प्राकृत आवास परम धाम का स्मरण करते हुए अपने आत्म स्वरूप में टिके रहना ज़रूरी )
ReplyDeleteबिलकुल
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ReplyDeleteकबीर अपने एक दोहे में कहते हैं -मन को अमन कर दो ,शून्य में लगा दो वैसे ही जैसे नमक पानी में विलीन हो जाता है और पानी नमक हो जाता है .तुम भी शून्य हो जाओ .मन का अमनीकरण कर लो .
स्दाजी, ऋतू जी, रमाकांत जी, वीरू भाई, शा जी आप सभी का स्वागत तथा आभार !
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