हजारों वर्ष पहले मानव यह जान चुका
था कि ईश्वर उसके ही हृदय में निवास करते हैं, वही सर्वोच्च शक्ति का वाहक है, वही परमात्मा का अंश
है, जो परमात्मा का परिचय दे सकता है, वही है जो अनंत प्रेम बाँट सकता है, वही है जिसके लिए
परमात्मा ने इस सुंदर सृष्टि का निर्माण किया है, उसी के पास बुद्धि रूपी अस्त्र है,
ज्ञान रूपी अग्नि है. उसमें देवत्व की सारी सम्भावनाएं मौजूद हैं, पर उसको परम
स्वतंतत्रा भी है कि वह इन सबका उपयोग ऊपर उठने के लिए करे या नीचे गिरने के लिए. क्योंकि
उसमें दानव बनने की भी समस्त सम्भावनाएं हैं, वह स्वयं को दुखी भी बना सकता है और
चाहे तो परमपद भी पा सकता है, जहाँ शांति की अजस्र धारा बहती है.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteएक दम से सटीक .सुन्दर .जैसा चाहो बन जाओ अपने कर्मों और पुरुषार्थ से .
ReplyDeleteराजेश जी व वीरू भाई स्वागत व आभार!
ReplyDeleteना मंदिर ,ना मस्जिद ,ना गिरजे में मिलेंगे
ReplyDeleteआँख मूंदो दिल-द्वार खोलो ,खुदा वहीँ मिलेंगे
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