Monday, October 3, 2011

आनंद

मई २००२ 
जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता है एक निर्दोष आनंद, एक ऐसी मुस्कान जो कोई हमसे छीन न सके. किसी को मुझसे भय न हो और किसी से मुझको भय न हो यह बहुत बड़ा गुण है. जितना-जितना हम स्वयं को व्यर्थ के संकल्पों से खाली करते जायेंगे वह आनंद जो भीतर ही है, कहीं से लाना नहीं है, भरता जायेगा, वह मुस्कान भी हमारी आत्मा प्रतिपल लुटाए जा रही है पर मन का आवरण उसे प्रकट होने नहीं देता. मन में श्रद्धा हो तो धीरे धीरे वह समाहित होने लगता है और आवरण क्षीण होने लगते हैं.

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