मई २००२
जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता है एक निर्दोष आनंद, एक ऐसी मुस्कान जो कोई हमसे छीन न सके. किसी को मुझसे भय न हो और किसी से मुझको भय न हो यह बहुत बड़ा गुण है. जितना-जितना हम स्वयं को व्यर्थ के संकल्पों से खाली करते जायेंगे वह आनंद जो भीतर ही है, कहीं से लाना नहीं है, भरता जायेगा, वह मुस्कान भी हमारी आत्मा प्रतिपल लुटाए जा रही है पर मन का आवरण उसे प्रकट होने नहीं देता. मन में श्रद्धा हो तो धीरे धीरे वह समाहित होने लगता है और आवरण क्षीण होने लगते हैं.
बहुत सही बात।
ReplyDeletesundar baat hai saral jivan binaa chhal kapat binaa unch nich ...
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