Monday, October 17, 2011

अहंकार


मई २००२ 

अहंकार बहुत सूक्ष्म होता है. कई बार हमें लगता है कि हम इससे मुक्त हो रहे हैं. पर इसकी जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि थोड़ा सा अनुकूल अवसर पाने पर यह अंकुरित हो जाती हैं. हमारा अहं ही ईश्वर और हमारे बीच दीवार बन कर खड़ा है. ईश्वर कितने उपायों से इसे तोड़ना सिखाते हैं पर हम उनसे ही नाराज हो जाते हैं. जीवन में जब भी हमें मानसिक उद्वेग या पीड़ा का अनुभव होता है इसके पीछे हमारा अहंकार ही जिम्मेदार है. ऊपर से तुर्रा यह कि अहं सत्य नहीं है, इसकी परत दर परत खोलते चले जाएँ तो वहाँ कुछ बचता नहीं. स्वयं को कुछ साबित करना इसी अहं का ही एक रूप है. यदि हम खाली होकर प्रभु द्वार पर जायेंगे तभी कुछ पा सकते हैं, पूर्ण विनम्र होकर ही परम को रिझाया जा सकता है. 

5 comments:

  1. Aapne ekdam sahi likha hai ki ahm ko galaye bina prabhu ko paya nahi ja sakta. kyonki ahm rahne par dwait bhav bana rahta hai. jaha dwait hoga waha ishwar ka anubhav ho hi nahi sakta. Bhagwan ram ne bhi kaha hai ki mujhe pane ke liye man ki nirmalta jaruri hai. ahm ko galane ka sabse aasan tarika dhyan hai. Yah keval kitabi gyan se nahi galne wala hai.

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  2. अहंकार अंत में जाता है।

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  3. अहंकार पे जीत आसान नहीं ...

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  4. शरीर जड़ है मन बुद्धि चित्त अहंकार सभी शरीर का सूक्ष्म अंग हैं। पुरुष प्रकृति के संयोग से अहंकार उत्पन्न होता है। कहते हैं कि आत्मा बिम्ब है और अहंकार प्रतिबिम्ब है।जिस मैं का अनुभव दैनिक जीवन में होता है वह अहंकार का मैं है।यह अहंकार का मैं है जब आवेशित होता है तो हमारा अंतर्मन गर्म हो कर वाष्प छोड़ने लगता है। अध्यात्म में प्रगति होने पर महसूस होता है कि मन बुद्धि चित्त अहंकार हमसे जुदा है।इस स्थिति में हम आत्म दशा में होते हैं।हम अपने मन बुद्धि चित्त अहंकार को अपने से अलग देखते हैं महसूस करते हैं। ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या।

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  5. वाह ! बहुत सुंदर शब्दों में गूढ़ ज्ञान, स्वागत व आभार !

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