अप्रैल २००२
हमारे विचारों का केन्द्र चिन्मय है अथवा मृण्मय, इस पर ही सब निर्भर करता है. हमारा मन, बुद्धि देह सभी मृण्मय हैं पर इनका प्रयोग हमें चिन्मय को जानने के लिए करना है. ऐसा कब होगा, कैसे होगा यह तो समय ही जानता है पर हमारी जीवन यात्रा यदि उस ओर हो तो आनंद हमारा सहचर बन जाता है. जैसे जल में प्रवेश करते ही उसकी शीतलता का अनुभव होता है, चिन्मय जो सत् चित् आनंद स्वरूप है उसका चिंतन करते ही उसकी हवा हमें छूने लगती है. पहले उसे स्थूल रूप में देखना है फिर सूक्ष्म भी अनुभव में आयेगा. प्रकृति में उसी का रूप छिपा है. जैसे मोती धागे में पिरोये होते हैं सारा जगत उसी में पिरोया हुआ है.
गूढ़ बातें हैं.
ReplyDeleteबार-बार आयेंगे, तो कुछ समझ पायेंगे!
आशीष
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लाईफ़?!?
गहब चिन्तन!
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