मई २००२
हमारे मन पर न जाने कितने जन्मों के संस्कार हैं, जिनकी छवि इतनी गहरी है कि पल भर की असजगता हमें पुनः वहीं ले जाकर खड़ा कर देती है, जहाँ से छूटना चाहते थे. ध्यान की निर्विकारिता के पलों में यही संस्कार मिटते हैं. शुभ-अशुभ की स्मृति न रहे तो मन शांत रहेगा, अंतरंग तत्व का दर्शन होगा तो हमारी बुद्धि शुद्ध होगी. भगवद् गीता में कृष्ण कहते हैं कि यदि हम कर्मों को निष्काम भाव से करते हुए चित्त को उनमें लगाए रहेंगे तो वह हमें बुद्धियोग प्रदान करेंगे. सभी परिस्थितियों में समभाव बनाये रखना भी चित्त को प्रभु में लगाये रखने जैसा ही है. बुद्धियोग होने पर ही सजगता बनी रह सकती है.
सच में, कई जन्मों का जीवन जी रहे हैं हम।
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