Friday, October 14, 2011

परम कैसा होगा


मई २००२ 
परमात्मा सत्य स्वरूप है, सदा से है, सदा रहेगा. सबका आधार है, जिसकी सत्ता से हमारी धडकनें चल रही हैं, जो हमारे भीतर है. हमारे हर क्षण का साक्षी है. जो हमें सदा प्रेरित करता है. जिसका न आदि है न कोई अंत. न वह स्थूल है न सूक्ष्म. जिसे हम इन्द्रियों से देख नहीं सकते. जो मन की गहराइयों में भी अव्यक्त है. जो सुख का स्रोत है, प्रेम व ज्ञान का सागर है जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है. वही शब्द है वही नाद और वही प्राण है, और वही इन सबका आधार...जो सदा वर्तमान में है उसे यदि अनुभव करना है तो इसी क्षण करना होगा वह भविष्य में भी जब मिलेगा वर्तमान के पल में ही मिलेगा.   

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