मई २००२
ध्यान करते समय जब मन में कोई अन्य विचार आ जाता है तो ध्यान अधूरा ही है. परमात्मा का असल स्वरूप शुद्ध चैतन्यता है. जब मन इसमें एक हो जाता है तब अद्वैत का अनुभव होता है. एक विचार के अतिरिक्त कोई अन्य विचार न रहे तब चित्त में भगवद् प्रसाद भरने लगता है. इस प्रसाद के बिना हृदय की अशांति नहीं मिट सकती. यही एक मात्र औषधि है जो हमें रस सिक्त करती है. शरद काल के आकाश की तरह निर्मल चेतना भीतर प्रकट हो जाती है.
यही एक मात्र औषधि है जो हमें रस सिक्त करती है. शरद काल के आकाश की तरह निर्मल चेतना भीतर प्रकट हो जाती है.
ReplyDeleteनिर्मल ध्यान ..
सही विचार।
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