मई २००२
साधक के मन में श्रद्धा हो और पूर्ण विश्वास भी कि सब कारणों के एक मात्र कारण परमात्मा ही हैं, उनकी प्रसन्नता में ही हमारी प्रसन्नता है. वह हमारे हृदय में रहते हैं और हमारे शुभ-अशुभ विचारों व कर्मों के भी साक्षी हैं, वही हमें कर्म करने के लिये प्रेरित करते हैं. यदि उनकी शरण में चले जाएँ तो वह हमारा भार अपने पर ले लेते हैं और हम निश्चिंत बालक की तरह आनंद से भर जाते हैं. शरीर, मन और बुद्धि की दासता को त्याग कर यदि हम परमात्मा के प्रेम का बंधन स्वीकार करते हैं तो सारा का सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है. यह विश्वास अनुभव के बिना टिकता नहीं है और अनुभव के लिये ही साधना करनी है.
समर्पण में सहज आनन्द छिपा है।
ReplyDeleteसही कहा है।
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