ज्ञान वहीं टिकता है जहाँ वैराग्य है. मैं कुछ हूँ तो मेरा भी कुछ होगा, यदि मैं कुछ नहीं तो मेरा भी कुछ नहीं, फिर कैसा बंधन और कैसी मुक्ति? सदगुरु कामना शून्य है, अहंकार शून्य है जो स्वयं भी वैसा हो जाता है वही ईश्वर को पा सकता है. जैसे हवा है और धूप है वैसे ही ईश्वर हमारे चारों ओर मौजूद है पर कुछ होने का भाव ही उससे दूरी बना देता है. उसे एकछत्र अधिकार चाहिए. मन यदि पूरा उसे नहीं सौंपा तो वह कुबूल नहीं करता. गुरु नानक ने कहा है पूरा प्रभु आराधिए, पूरा जाका नाम, पूरा पूरे से मिले, पूरे के गुन गाम !
पूरा प्रभु आराधिए, पूरा जाका नाम,
ReplyDeleteपूरा पूरे से मिले, पूरे के गुन गाम !
बहुत सुंदर बातें॥