Saturday, October 8, 2011

ज्ञान के मोती


मई २००२ 
हमारा मन ही हमें सुख-दुःख प्रदान करता है, कोई बाहरी व्यक्ति या परिस्थिति हमें हमारी इच्छा के बिना विषाद नहीं दे सकती. आंतरिक शत्रुओं को नष्ट करते ही सभी हमारे मित्र हो जाते हैं. जैसे-जैसे हम ज्ञान के सागर में गहरे उतरते जाते हैं, मोती और सुंदर होते जाते हैं. सदगुरु ज्ञान का सागर है जिसके वचन सुनहरे मोती हैं जिनकी चमक हमें धारण करनी है जिसके प्रकाश में हमारी आत्मा प्रकाशित होगी.  

3 comments:

  1. ये सब बातें कहने और सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं, जीवन की ज़बरदस्त और असहनीय उथल पुथल के बीच इन पर अमल उतना ही मुश्किल होता है.

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  3. कुँवर कुसुमेशजी, ये बातें मुश्किल जरूर हैं पर असम्भव नहीं...कुछ वर्ष पूर्व मैं भी ऐसा ही मानती थी पर साधना करते करते अब बहुत कुछ अनुभव बन गया है.

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