Monday, March 18, 2013

एक प्रार्थना ऐसी भी


जून २००४ 
यदि कोई बेचैन नहीं होता, हर परिस्थिति को समता से स्वीकार करता है, तभी समझना चाहिए कि वह प्रेम में है, प्रेम किया नहीं जाता यह एक अवस्था है, इसका प्रमाण है हमारे भीतर की अथाह शांति.. हम पहाड़ के नीचे की घास बन जाएँ, अर्थात निरभिमानी हो जाएँ, तो ही शांति का अनुभव कर सकते हैं. दुःख आने पर हम पत्थर बन जाएँ अर्थात दृढ रहें, एक आत्मीयता का भाव भीतर रहे. ज्ञान की अग्नि अशुभ संकल्पों को जला दे पर हृदय इतना तप्त न हो कि हम अकेले-अकेले ही अपने भीतर के सुख को पाना चाहें, हम अपने आंगन में चमेली का पौधा बन जाएँ जो भीतर रहने वालों और बाहर गुजरने वाले लोगों को सुगंध से भर देता है. जब किसी को प्रेम का प्रसाद मिल चुका हो तब उसके जीवन का और कोई उद्देश्य नहीं रह जाता सिवाय इसके कि वह अपनी ऊर्जा बाँटें, आनंद, शांति और प्रेम की ऊर्जा. 

6 comments:

  1. आनंद, शांति और प्रेम की ऊर्जा.
    अनुपम भाव

    ReplyDelete
    Replies
    1. सदा जी, स्वागत व आभार !

      Delete
  2. Replies
    1. धीरेन्द्र जी, स्वागत है

      Delete
  3. स्वीकार है..स्वीकार है..स्वीकार है..

    ReplyDelete
    Replies
    1. अमृता जी, आपकी इस स्वीकार में बहुत बड़ा रहस्य छुपा है..खुला रहस्य...स्वागत है !

      Delete