Wednesday, June 18, 2014

धर्म वही जो मुक्त करे

जून २००६ 
सद्गुरु कहते हैं, जो भीतर गया वह भी तर गया, अपने में शिफ्ट होकर ही कोई तर सकता है. मुक्ति का आनंद न तो गिफ्ट में मिलता है न ही किसी के द्वारा दी लिफ्ट में मिलता है, वह तो अपने में शिफ्ट होने पर मिलता है. जीवन में मुक्ति की साधना करनी है तभी हम स्वयं में आ सकते हैं, यानि पहले देहस्थ फिर मनस्थ और अंत में आत्मस्थ. अभी तो हमारा मन चौबीस घंटे बाहर ही भागता रहता है. यद्यपि हम जो भी करते हैं मुक्ति के लिए ही करते हैं पर उसका अंत बंधन में होता है. हमारा प्रेम भी बंधन हो जाता है और ज्ञान भी. स्वयं में गये बिना मोक्ष सम्भव नहीं है.                                                                                                                    

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार आदरेया।

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  2. सुन्दर ज्ञान मोती

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  3. राजेन्द्र जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !

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