दिसम्बर २००६
संतजन
कहते हैं, मनोरंजन पर आत्म रंजन का, भोग पर योग का, राग पर विराग का तथा अज्ञान पर
ज्ञान का अंकुश रहना चाहिए. अंकुश ढीला पड़ भी जाये तो बस उतनी देर जितनी देर एक
लहर पानी में उठे और गिरे. आत्मा के स्तर पर सभी प्राणी एक दूसरे से जुड़े ही हैं,
यह बात जब एक बार अनुभव के स्तर पर जान ली जाती है तो सदा के लिए शांति की एक
कुंजी हमारे हाथ लग जाती है. इस ज्ञान के बाद आत्म रंजन, योग और विराग स्वत ही मिल
जाते हैं. हम जब किसी न किसी उद्देश्य पूर्ण कार्य में लगे रहते हैं तो भीतर एक
ऊर्जा स्वयं ही निर्मित होती है, और जब जीवन में कोई ध्येय न हो तो वह ऊर्जा मंद पड़
जाती है. यही ऊर्जा योग है.
सार्थक मार्गदर्शन अनीता जी ...बहुत सुंदर बात ...!!
ReplyDeleteसुन्दर ... या अन्कुच जरूरी हैं जीवन में ...
ReplyDeleteसार कह दिया जीवन को सार्थक बनाने का रास्ता यही है। करो कुछ नित नया उपयोगी जान मन के लिए।
ReplyDeleteअनुपमा जी, दिगम्बर जी व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !
ReplyDeletebahut badhiya aalekh
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