अप्रैल २००६
एक समय ऐसा आता है, जब साधक को लगता
है कि उसके जीवन की कहानी का सूत्रधार कहीं बैठ-बैठा इसके पन्नों को खोल रहा है,
बाद में कुछ घटने वाला है इसके लिए वह पहले पृष्ठभूमि तैयार करता है. सदा ही ऐसा
होता आया होगा पर पहले सजगता नहीं थी. ईश्वर को अपने भक्तों का अहंकार जरा भी पसंद
नहीं है, प्रकृति को भी हमारा प्रमादी रहना पसंद नहीं है, तभी तो उसके नियमों के
विपरीत चलने पर हमें उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है. जो हम दूसरों के साथ करते आए
हैं, वही जब खुद के साथ घटने लगता है तभी हम सीखते हैं.
ha tabi pata chal ta ha...
ReplyDeleteनयी सोच और नयी तकनीक के साथ नये युग की शुरुवात
बिल्कुल सच कहा
ReplyDeleteललित जी व सदा जी, स्वागत व आभार !
Delete" तेरा सॉईं तुज्झ में ज्यों पुहुँपन में वास ।
ReplyDeleteकस्तूरी के मिरग ज्यों फिरि- फिरि ढूँढै घास।"
कबीर [कल जिनकी जयन्ती थी ]
शकुंतला जी, कबीर जयंती की शुभकामनाएं !
Delete