दिसम्बर २००६
ज्ञान
हमें मुक्त कर देता है, भीतर से मुक्तता अनुभव में आते ही सारा जगत एक अनोखे
प्रकाश से भर गया प्रतीत होता है. आत्मज्ञान पाकर ही मानव वास्तव में स्वयं को
पहचानता है. उसके पूर्व तो वह अपनी क्षमता से कहीं निम्न स्तर पर जीता है. एक
दासता का जीवन, मन की दासता, इन्द्रियों की दासता, धन, यश, मोह, क्रोध, और अहंकार
की दासता, इनके अलावा मन की और कई सुप्त प्रवृत्तियों की दासता वह सहता है. किन्तु
जब सत्य का बोध होता है मात्र उसकी झलक भर मिलती है तो जैसे कोई पर्दा उठ जाता है.
वह स्वयं को कितना हल्का महसूस करता है. अनंत आकाश में निर्विरोध उसका गमन होता
है.
आत्म ज्ञान फिर ब्रह्म ज्ञान यही सार है उपनिषदों का।
ReplyDeleteआत्मज्ञान पाकर ही मानव वास्तव में स्वयं को पहचानता है ..... बिल्कुल सच
ReplyDeleteवीरू भाई व सदा जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसत्य आत्मज्ञान से ही आता है ... अति सुन्दर विचार ...
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