जुलाई २००६
ब्रह्म
साकार भी है निराकार भी, वह परमात्मा के रूप में हमारे हृदयों में रहता है. हमारे
मन का आधार भी वही है. मन जब कृष्ण समाहित होता है तो वह भीतर-बाहर उसे ही देखता
है. मन के पार दोनों एक ही हैं. पर साधक यहीं आकर ठहर नहीं जाता, इसके बाद भक्ति
के फूल खिलाता है. भक्ति के बाद ही जीवन में रस मिलता है, आनन्द प्रकट होता है,
उल्लास प्रकटता है. उसकी व्यापकता का, भव्यता का ज्ञान होने के बाद ही भीतर
कृतज्ञता का भाव उमड़ता है. धन्यभागी होने का भाव जगता है और तब जीवन में पूर्णता
आती है. इस अनंत ब्रह्मांड को जो संकल्प रूप से रचते हैं वह परमात्मा हमारे आराध्य
हैं यह भाव जगते ही मन प्रेम से झुक जाता है.
सुन्दर सन्देश...
ReplyDeleteसारा संसार ही कृष्णमय है। भक्ति ही जीवन की परकाष्ठा है ,हासिल है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रभु तुमने उपकार किया है , इतना सुन्दर जीवन देकर ।
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, वानभट जी, वीरू भाई, दर्शन जी, शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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