जुलाई २००६
हमारा
ध्यान मूल पर नहीं जाता, पदार्थ पर जाता है, चेतना भीतर जल रही है, उस पर ध्यान
जाने से ही सारी समस्याएँ समाप्त हो सकती हैं. चेतना की मलिनता और शुद्धि पर ध्यान
नहीं जाने से ही हम परेशान रहते हैं, बाहर अनेक समस्याएं हैं पर सबसे बड़ी समस्या
भीतर की है. हम प्रतिबिम्बों के पीछे भागते हैं, परछाईं पर हमारा ध्यान है जिसकी
वह परछाई है वह सुधर जाये तभी परछाई सुधर सकती है. वस्तुएं हमें सुविधा तो दे सकती
हैं सुख नहीं, सुख भीतर से आता है. हमारे भीतर जो उलझन है वह इसलिए कि हमें अपने
मूल तक पहुंचना नहीं आता, हम छोटे से समाधान को समग्र मानकर भ्रान्ति में फंस जाते
हैं. चेतना का विकास ही हमारे जीवन को पूर्णता प्रदान कर सकता है.
इसीलिए श्रुतियों ने " नेति - नेति ' कह - कर परिभाषित किया है ।
ReplyDeleteसही कहा है शकुंतला जी, आभार !
ReplyDeleteबहुत ही गहन विचार
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