अप्रैल २००६
किसी ने हम पर क्रोध किया और हम जल गये
तो इसका अर्थ है नियति ने हमारे घड़े को खाली करना चाहा था पर हम खाली न हुए. मन घट
के समान है, ऐसा मन जो परमात्मा द्वारा सहेजा गया है, वह नहीं जलता, न अपने न
दूसरों के क्रोध की अग्नि में. वह खाली है और वही शीतल जल से भरा जाता है, कुम्हार
द्वारा तपाये घड़ों में भी जो जल जाता है वह व्यर्थ हो जाता है, जो नहीं जलता वही
काम में आता है. सन्त यह भी कहते हैं, जो तप गया वह कांच, जो नहीं तपा वह हीरा है.
सन्त यह भी कहते हैं, जो तप गया वह कांच, जो नहीं तपा वह हीरा है..........
ReplyDelete" क्षमा वीरस्य भूषणम् ।"
ReplyDeleteनीतिपरक बोध परक सन्देश देती विचार सरणी।
ReplyDeleteराहुल जी, शकुंतला जी व वीरू भाई स्वागत व आभार !
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