Monday, June 9, 2014

मनवा शीतल होए

अप्रैल २००६ 
किसी ने हम पर क्रोध किया और हम जल गये तो इसका अर्थ है नियति ने हमारे घड़े को खाली करना चाहा था पर हम खाली न हुए. मन घट के समान है, ऐसा मन जो परमात्मा द्वारा सहेजा गया है, वह नहीं जलता, न अपने न दूसरों के क्रोध की अग्नि में. वह खाली है और वही शीतल जल से भरा जाता है, कुम्हार द्वारा तपाये घड़ों में भी जो जल जाता है वह व्यर्थ हो जाता है, जो नहीं जलता वही काम में आता है. सन्त यह भी कहते हैं, जो तप गया वह कांच, जो नहीं तपा वह हीरा है.


4 comments:

  1. सन्त यह भी कहते हैं, जो तप गया वह कांच, जो नहीं तपा वह हीरा है..........

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  2. " क्षमा वीरस्य भूषणम् ।"

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  3. नीतिपरक बोध परक सन्देश देती विचार सरणी।

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  4. राहुल जी, शकुंतला जी व वीरू भाई स्वागत व आभार !

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