अगस्त २००६
हमारा अंतर्जगत
अति विशाल व सूक्ष्म है और उसमें प्रतिपल कितना कुछ घटता रहता है. इसका मूल तत्व
मन नहीं भाव है, भाव की संवेदना बहुत दूर तक जाती है, जहां मन नहीं पहुँचता,
बुद्धि नहीं पहुंचती, वहाँ भाव के सूक्ष्म कण पहुंच जाते हैं. मन व बुद्धि भी
अंतर्भाव से प्रभावित होते हैं, अतः इसकी शुद्धि का सदा ध्यान रखना होगा. भीतर की
यात्रा पर जब साधक जाता है तो उसे विचारों के पार भावों के सूक्ष्म लोक में प्रवेश
करना होता है. भाव धारा को बदले बिना विचार धारा बदली नहीं जा सकती और विचारों पर
ही कर्म आधारित हैं, तथा कर्मों पर हमारा भविष्य, अतः भाव शुद्धि के बिना हम सुखद
भविष्य की आशा नहीं रख सकते.
भाव शुद्धि ही भक्ति की ओर ले जाती है।भाव शान्ति करती है।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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