दिसम्बर २००६
जीवन
में यदि योग हो, ईश्वर की लगन हो, सद्गुरु का अनुग्रह हो और मन में समता हो तो
परमात्मा को प्रकट होने में देर नहीं लगती, वह तत्क्ष्ण प्रकट हो जाता है. प्रभु
का स्मरण यदि स्वतः ही होता हो, मन उसके बिना स्वयं को असहाय अनुभव करता हो,
वैराग्य सहज हो जाये तो हमारी पात्रता के अनुसार ईश्वर प्रकट हो जाता है. जो विराट
है इतने बड़े ब्रम्हाण्ड का मालिक है, वह एक साधक के छोटे से उर में प्रकट हो जाता
है. भक्ति विराट को लघु, असीम को ससीम बनाने में सक्षम है और लघु को विराट व ससीम
को असीम बनाने में भी. ऐसी भक्ति ही साधक का ध्येय है, साध्य है. देह और बुद्धि की
सार्थकता इसी में है कि इसमें चैतन्य प्रकटे. सजगता साधना की पहली और अंतिम सीढ़ी
है, बिना सजग रहे हम कहीं नहीं पहुंच सकते.
सही कहा
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (27.06.2014) को "प्यार के रूप " (चर्चा अंक-1656)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteभक्ति से ही परमात्मा की कृपा , ग्रेस प्राप्त होती है.
ReplyDeleteइमरान व वीरू भाई स्वागत व आभार !
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