अप्रैल २०००
कर्त्ताभाव जब क्षीण हो जाये तो ही ब्रह्मभाव जगेगा, बीज जब मिटेगा तब ही तो वृक्ष बनेगा. जब तक कर्त्ता मौजूद रहेगा अहंकार बना ही रहेगा, और हम उस ईश्वर से दूर ही रहेंगे. अपनी आवश्यकताएँ कम से कम रखने से, अन्यों पर कम से कम आश्रित रहने से अहंकार का विस्तार नहीं होता. लोभ, क्रोध जैसे अवगुणों पर ध्यान देने से भी अहंकार कम होता है, लेकिन हम जो भी साधना करेंगे वह भी तो कहीं अहंकार को बढावा देने वाली ही नहीं सिद्ध हो रही. ईश्वर जो अपना आप बनकर बैठा है, सब देखता है और मुस्काता है कि उसका नाम लेने वाले भी किस तरह संसार के चक्रव्यूह में फंसे हैं.
बहुत सुंदर ...लाजवाब प्रस्तुति.......
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