अप्रैल २०००
चलना तो खुद ही पड़ेगा, कोई हमारे दिये की बाती ऊँची कर देगा पर रस्ता तो खुद ही तय करना होगा. अपने मन को विकारों से ग्रस्त स्वयं हमने किया है तो उसे मुक्त करने कोई और क्यों आयेगा, वह हमारी थोड़ी सहायता जरूर कर देगा बस इतना ही. इन्द्रियातीत अवस्था का अनुभव करने के लिये अपने को धीरे-धीरे साधना तो खुद ही पड़ेगा.
अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, कटुता से माधुर्य की ओर जो ले जाये ऐसा ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है. शरीर का पोषण भोजन से, मन का पोषण शिक्षा से, पर आत्मा का पोषण मात्र ईश्वर के प्रेम से ही संभव है.
इसमें क्या शक.
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